लोक व्यवहार पुस्तक How to Win Friends and Influcnce people by Dale Carnegie book in hindi summary

           #लोगो को प्रभावित करने के मूलभूत तरीक़े
सिद्धांत 1-"बुराई मत करो,निंदा मत करो,शिकायत मत करो"
किसी की आलोचना करने का कोई फायदा नहीं होता, क्योकि इससे सामने वाला अपना बचाव करने लगता है, बहाने बनाने लगता है या तर्क देने लगता है| आलोचना खतरनाक भी है क्योकि इससे उस व्यक्ति का बहुमूल्य आत्मसम्मान आहत होता है और बह आपके प्रति दुर्भावना रखने लगता है |
 मनोविज्ञानिक हैस सेल्वे ने कहा-जितने हम  सराहना के भूखे है,उतने ही हम निंदा से डरते है | 
आलोचना या निंदा से कर्मचारियों,  सदस्यों और दोस्तों का मनोबल काम हो जाता है और उस स्थिति में कोई सुधर नहीं होता, जिसके लिए आलोचना की जाती है |
 मानव स्वभाव ही ऐसा है कि हर गलत काम करने वाला अपनी गलती के लिए दुसरो को दोष देता है, परिस्थितियों को दोष देता है, परन्तु खुद को दोष नहीं देता | हम सब यही करते है | इसलिए अगली बार जब हमारी इच्छा किसी की आलोचना करने की हो, तो इससे बचे | 
किसी की आलोचन अंत करो, ताकि आपकी  आलोचना न हो -लिंकन 

सिद्धांत 2- "सच्ची तारीफ करने की आदत डाले"
डॉ. ड्यूई ने कहा था कि मानव प्रकृति में सबसे गहन आकांक्षा "महत्वपूर्ण बनने की आकांक्षा"
यह एक ऐसी मानवीय भूख है जो स्थायी है | और वह दुर्लभ व्यक्ति जो लोगो की इस प्रशंसा की भूख को संतुष्ट करता है,लोगो को अपने वश में कर सकता है |  लोग उससे इतना प्रेम करेंगे की दफनाने वाले तक उसकी मौत पर दुखी होंगे | 
 अगर आपको किसी की कुछ बात अच्छी लगती है तो दिल खोल कर तारीफ करनी चाहिए और मुक्त कंठ से सराहना करनी चाहिए | 
परन्तु चापलूसी से बचे क्योकि यह उथली, स्वार्थी,और झूठी होती है | यह समझदार लोगो के सामने सफल नहीं होती |

सिद्धांत 3-"दूसरे लोदो में सचमुच रूचि ले और उनके रूचि के विषय में बात करे "
जिस व्यक्ति की दूसरे लोगो में रूचि नहीं होती उसे जीवन में सबसे ज्यादा कठिनाइया आती है और वे दुसरो को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है| इसी तरह के व्यक्ति ही सबसे ज्यादा असफल देखे गए है| 
जब हम दुसरो में रूचि लेते है तभी लोग हम में रूचि लेते है| 
*थियोडोर रूजवेल्ट से मिलने वाला हर अतिथि उनके ज्ञान के अथाह भंडार से चमत्कृत हो जाता था | क्योकि रूजवेल्ट जानते थे ,जैसे सभी नेता जानते है, कि किसी व्यक्ति के दिल का रास्ता उसके पसंदीदा विषयो के बारे में बात करने से होकर गुजरता है | 
इसलिए सामने वाले में रूचि ले और साथ ही उसके रूचि के विषय में बात करे |

सिद्धांत 4-"मुस्कराएँ "
हमारे काम शब्दों से ज्यादा तेज स्वर में बोलते है | आपकी मुस्कराहट कहती है,"मै आपको पसंद करता हूँ | आपसे मिलकर मुझे ख़ुशी होती है | आपको देखकर मैं खुश हुआ | इसी लिए हम कुत्तो को इतना प्यार करते है | वे आपको देख कर इतना खुस हो जाते है कि ख़ुशी से झूमने लगते है | इसलिए यह स्वाभाविक है कि हम भी उन्हें देखकर खुश होते है  | पर ध्यान रहे, झूठी मुस्कराहट से कोई फायदा नहीं होगा | 
आपको मुस्कराना मुश्किल लगता है | तो फिर क्या करे? आप दो काम कर सकते है | जब आप अकेले हो,तो सिटी बजाएँ या गुनगुनाएँ या गाएँ |इस तरह व्यवहार करे जैसे आप सचमुच खुश हो और कुछ समय बाद आपको खुशी का अनुभव होने लगेगा | 
"जिस व्यक्ति के पास मुस्कराता हुआ चेहरा न हो, उसे दुकान नहीं खोलनी चाहिए"-चीनी दार्शनिक

सिद्धांत 5-"याद रखे किसी व्यक्ति का नाम उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण और मधुरतम शब्द है"
    किसी के नाम को याद रखना और आसानी से उसका उच्चारण करना अपनेपन की निशानी है और अप्रत्यक्ष रूप से उसे सम्मान देना है | किसी के नाम को भूल जाना या उसे गलत लिखना बेगानेपन और लापरवाही है| 
लोगो को अपने नाम पर इतना अधिक गर्व होता है कि वे इसे किसी भी कीमत पर अमर रखना है| सदियों से अभिजात्य वर्ग धनी लोग संगीतकारो, लेखकों और कलाकारों को आर्थिक सहायता इसलिए देते आ रहे है ताकि उनकी रचनाएँ उनके नाम पर समर्पित की जाये | 
राजनेताओ को ये सबक शुरुवाती दौर में ही सिख लेना चाहिए कि "किसी मतदाता का नाम याद रखना राजनीतिक कला है और इसे भूल जाना  हारने की कला है "|  ये बिजनेस और सामाजिक संबंधों में भी इतना ही सही है | 


सिद्धांत 6 -" अच्छे श्रोता बने | दुसरो कोप खुद के बारे में बाते करने के लिए प्रोत्साहित करे "
बहुत काम लोग ऐसे होते है जो मन लगाकर सुनने की चापलूसी को पसंद नहीं करते | 
सफल बिजनेस चर्चा के बारे में कोई रहस्य नहीं है...... जो आपसे बात कर रहा है उस पर सम्पूर्ण ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है | सुनने की कला घर पर भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि बिजनेस में | 
बड़े से बड़ा आलोचक भी धैर्यवान,सहानुभूतिपूर्ण श्रोता के सामने नरम पड़ जाएगा-एक ऐसा श्रोता जो उस समय चुप रहे जब क्रोधित आलोचक किंग कोबरा की तरह फन फैलाकर अपना जहर उगल रहा हो | 
जो लोग खुद के बारे में  ही सोचता है वह बुरी तरह अशिक्षित होते है | वे शिक्षित नहीं होते, चाहे वे कितने ही पढ़े लिखे क्यों न हो | 




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